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# महात्मा ज्योतिबा फुले #

  • Writer: Kishori Raman
    Kishori Raman
  • Apr 11, 2022
  • 3 min read

(जयन्ती पर विशेष आलेख)


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आज महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती है। वही महात्मा फुले जिन्हें बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने तथागत बुद्ध और कबीर के बाद अपना तीसरा गुरु माना था। बाबा साहब अपनी पुस्तक "शुद्र कौन थे ?" को ज्योतिबा फुले को समर्पित करते हुए उनके बारे में लिखा है "उन्होंने (फुले ने) हिन्दू समाज मे छोटी जाति के लोगो को उच्च जाति के प्रति अपनी गुलामी की भावना के खिलाफ जगाया और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना को अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाने से भी कहीं जरूरी बताया। यह किताब फुले की स्मृति में सादर समर्पित " महात्मा ज्योतिबा गोबिंद राव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में हुआ था। पिता का नाम गोविंद राव तथा माता का नाम चिमना बाई था। उनका विवाह सन 1840 में सावित्री बाई फुले के साथ हुआ था। ज्योतिबा फुले माली जाती से थे जिन्हें महाराष्ट्र में शुद्र माना जाता है। उनके पढ़ने पर जब उच्च जाति के लोगों ने विरोध किया तो उनके पिता ने उनकी पढ़ाई छुड़वा कर उन्हें फूल की खेती में लगा दिया। उनमें पढ़ाई की ललक ने उन्हें फिर से स्कूल जाने को प्रेरित किया और इक्कीस वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजी स्कूल से सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। समाज को उनका महत्वपूर्ण योगदान महिलाओं के बीच शिक्षा का प्रचार प्रसार था। उनकी पहली अनुयायी उनकी पत्नी साबित्री बाई फुले थी जिन्होंने जीवन भर उनका साथ दिया। लड़कियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए सन 1848 में एक स्कूल खोला जो देश मे लड़कियों के लिए पहला विद्यालय था। उनकी पत्नी सावित्री बाई वहाँ अध्यापन का कार्य करती थी। लेकिन लडकियों को शिक्षित करने के प्रयास में उन्हें समाज के दबंगों के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें अपना घर छोड़ने पर मजबूर किया गया। सामाजिक प्रताड़नाओं और धमकियों के बाबजूद भी वे अपने लक्ष्य से भटके नही और समाजिक बुराईयों, धार्मिक कुरीतियों, ऊँच-नीच तथा छुआ छूत के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा।


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ज्योतिबा फुले बाल विवाह के खिलाफ थे साथ ही साथ विधवा विवाह के समर्थक थे। उन्होंने शोषण के शिकार और बेसहारा महिलाओं के लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिये। उन्होंने ब्राह्मण पुरोहित के बिना विवाह संस्कार आरम्भ कराया और इसे तब के बम्बई हाई कोर्ट से भी मान्यता मिली। सन 1873 में इन्होंने सत्य शोधक समाज नामक संस्था की स्थापना की। इसी साल इनकी पुस्तक " गुलामगिरी" का प्रकाशन हुआ। इन दोनों घटनाओं ने पश्चिम और दक्षिण भारत के भावी इतिहास और चिंतन को प्रभावित किया। इन्ही विचारों को केंद्र विंदु बनाकर बहुत सारे आंदोलन हुए। दलित अस्मिता की लड़ाई का आधार भी गुलामगिरी पुस्तक बना। उन्होंने अछूतोद्धार और किसानों के हितों के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया। सन 1882 में लिखी अपनी किताब " किसान का कोड़ा " में उन्होंने किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया। उनकी ख्याति देखकर पहले तो प्रतिक्रियावादियों ने उन्हें जातिऔर समाज से बहिष्कृत कर दिया, फिर दो हत्यारों को उन्हें मारने को भेजा पर वे हत्यारे भी ज्योतिबा के समाज सेवा को देखकर अपना इरादा छोड़ दिया और फूले के शिष्य बन गए। ज्योतिबा फुले ने अपने घर का कुआँ अछूतों के लिए खोलकर छुआछूत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला। सन 1860 में विधवाओं तथा उनके बच्चों के लिए एक आश्रम भी खोला। 1 जनवरी सन 1877 को "दीनबंधु" नाम से एक अखवार प्रकाशित करना शुरू किया जिसमे किसानों, मजदूरों और अछूतों की समस्याओं का प्रकाशन होता था। सन 1888 में उनके 60 वर्ष की उम्र होने पर बम्बई में उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया गया तथा उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई। महात्मा फुले ने लोकमान्य तिलक आगरकर, रानदे, दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर देश की राजनीति और सामाजिक सुधारों को आगे ले जाने की कोशिश की पर जब उन्हें लगा कि इन लोगों की भूमिका और इच्छा अछुतो को न्याय देने वाली नहीं है तब उन्होंने उनकी आलोचना भी की और अपना रास्ता अलग कर लिया। महात्मा फुले छत्रपति शिवाजी महाराज और जॉर्ज वाशिंगटन के जीवन चरित्र से काफी प्रभावित थे। उनका मानना था कि अशिक्षा के कारण ही हम शुद्र है और शिक्षित होकर ही हम इस बुराई से लड़ सकते हैं। उनका स्पष्ट कहना था कि--- बिद्या बिन मति गई, मति बिन नीति गई। नीति बिन गति गई, गति बिन वित्त गया। वित्त बिन शुद्र बना, ये घोर अनर्थ अविद्या ने किए। " अप्प दीपो भव " की चेतना लेकर उन्होंने संसार मे निर्बलो के बीच आत्म चेतना और आत्म सम्मान का भाव जगाए। आधुनिक भारत एवं शोषित वंचित लोग महात्मा फुले जैसे क्रांतिकारी विचारक के आभारी हैं। महात्मा फुले के विचारों ने उनके बाद के बहुजन नायकों जिनमे बाबा साहब प्रमुख हैं, काफी प्रभावित किया। उनके उपकार के प्रति नतमस्तक होकर हम अपने अनमोल अपूर्व ज्योतिबा फुले को याद करते हैं, उन्हें शत शत नमन करते हैं और उनके सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हैं। किशोरी रमण।


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3 Comments


Unknown member
Jul 09, 2022

Very nice....

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sah47730
sah47730
Apr 11, 2022

ज्योतिबाफूले समाज सुधारक थे वे ब्यक्तित्व के ऐसे धनी थे जानकर सुखद अनुभूति हुई। उन्हें शत-शत नमन।

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verma.vkv
verma.vkv
Apr 11, 2022

ज्योतिबा फूले को शत शत नमन।

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