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"हिन्दी दिवस"का नाटक क्यो ?

  • Writer: Kishori Raman
    Kishori Raman
  • Sep 11, 2022
  • 3 min read


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हर साल सितंबर माह के 14 तारीख को हम "हिन्दी- दिवस" के रूप में मनाते है। इसी दिन सन 1949 को संबिधान सभा मे एक मत से हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया था। सन 1953 से पूरे भारत मे 14 सितम्बर को "हिन्दी दिवस" के रूप में मनाया जाता है। 14 सितंबर बस आने वाला ही है। इस दिन हम सब हिन्दी दिवस समारोह बड़ी धूमधाम से मनाएँगे। हिन्दी भाषा के प्रति अच्छी-अच्छी बातें कहेगें,अपने उदगार प्रकट करेंगे। राष्ट्र और लोकतंत्र के विकास में हिन्दी के योगदान को रेखांकित करेंगे। समारोह में किसी हिन्दी के साहित्यकार या कवि को आमंत्रित कर उन्हें सम्मानित करेंगे। और इस तरह हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन कर एक औपचारिकता का निर्वहन करेंगे और संतुष्ट हो लेंगे। दूसरे दिन अखबारों में छपे फोटो, समाचार इत्यादि का संकलन कर उसका रिपोर्ट हम अपने ऊपर के कार्यालयों को भेजकर अपनी पीठ थपथपायेगें। पहले पूरे सितंबर माह को हम लोग "हिन्दी- माह" के रूप में मानते थे। पर धीरे-धीरे यह पखवारा, फिर सप्ताह और अब तो दिवस के रूप में सिमट गया है। अब तो यह एक दिन का प्रोग्राम बनकर रह गया है। सवाल यह है कि हम हिन्दी दिवस मनाते ही क्यों हैं ? अब क्या औचित्य रह गया है इसे मनाने का ? सिवाय इसके कि हम कागजों में खाना-पूरी करें कि हम हिन्दी को बढ़ाने का काम जो हमारा संवैधानिक दायित्व भी है उसे पूरा कर रहे हैं। साल भर तो हम विदेशी भाषा यानी अंग्रेजी में अपना सब काम करते हैं। अंग्रेजी का ही गुणगान करते हैं। हिन्दी की उपेक्षा करते हैं और सिर्फ एक दिन हिन्दी में काम करने का दिखावा करते हैं। आखिर यह नाटक हम क्यों करते हैं ? असल में हम भारतीय अपनी संस्कृति अपनी परंपरा अपनी भाषा इत्यादि की कद्र ही नहीं करते जब तक कि कोई विदेशी या बाहर का व्यक्ति हमें यह न बता दें कि आपकी अमुक चीज तो कमाल की है। और तब हमारी नींद खुलती है। हमारी राजभाषा हिन्दी के बारे में भी यही बात है। आज विश्व के अन्य देश चाहे वह भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने के कारण अथवा अपना व्यापार बढ़ाने की मजबूरी के कारण या किसी और स्वार्थ बस हिन्दी को अपना रहे हैं, हमारी हिन्दी को सीख रहे हैं हम आज भी अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं के दीवाने बने बैठे हैं। पहले तो हम गुलाम थे। अंग्रेजी अपनाना हमारी मजबूरी थी पर आज कौन सी मजबूरी है हमारी ? सिवा इसके कि हम हिन्दी को लेकर हीन भावना से ग्रस्त हैं। हमें लगता है कि अंग्रेजी के बिना समाज में मान सम्मान और अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती है। यह हमारा भ्रम है। हिन्दी एक सशक्त एवं सक्षम भाषा है। आज विश्व भर में इसकी श्रेष्ठता और महत्व को स्वीकार किया जा रहा है। जरूरत है तो हिन्दी भाषा को समृद्ध बनाने की। आइए हम संकल्प ले कि अपनी राजभाषा हिन्दी का सम्मान करेंगे और अपना सारा काम हिन्दी में ही करेंगे। हिन्दी को जन-जन तक पहुचायेंगे और इसे केवल भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया का श्रेष्ठ भाषा बनायेंगे। किशोरी रमण



हर भारतीय की शक्ति है हिन्दी एक सहज आभिब्यक्ति है हिन्दी हम सबका अभिमान है हिन्दी भारत माँ का शान है हिन्दी

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3 Comments


sah47730
sah47730
Sep 14, 2022

सही कथन। हिन्दी का उपयोग मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गया है। हिन्दी दिवस के नाम पर हो रहे कार्य क्रम एक नाटक ही तो है। काम काज की भाषा में हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी हिन्दी अपनाने से कतराना हिन्दी भाषा के साथ एक धोखा धड़ी नहीं तो और क्या है?

:-- मोहन मधुर"

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Unknown member
Sep 12, 2022

Bahut hi sundar....

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verma.vkv
verma.vkv
Sep 12, 2022

बिल्कुल सही लिखा है आपने।

हमें अपनी हिंदी को दिल से अपनाना चाहिए ।

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